Friday, January 3, 2020

नोट्स बनाकर पढ़ना क्या ज़्यादा फायदेमंद होता है?

वहीं, 50 वर्ष से अधिक आयु के क्लर्क ने बताया है कि 20 दिसंबर की रात वो और उनका 20 वर्षीय बेटा घर में सो रहे थे जब पुलिस दरवाज़ा तोड़कर उनके घर में घुसी और तोड़फोड़ की.

महाराष्ट्र में नवंबर महीने में एक ओर जहां सरकार बनाने के लिए विभिन्न दलों के बीच रस्साकशी चल रही थी वहीं उसी महीने में 300 किसानों ने आत्महत्या की.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया अख़बार के मुताबिक़, पिछले चार सालों में एक महीने में किसानों के आत्महत्या की ये सबसे अधिक संख्या है. इससे पहले साल 2015 में कई बार एक महीने के अंदर आत्महत्या का आंकड़ा 300 के पार गया था.

उन्होंने कहा, "यह दुखी करने वाला नहीं बल्कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की 'हम देखेंगे' को हिंदू विरोधी कहना मज़ाक़िया है. एक समूह इस नज़्म के संदेश की जाँच कर रहा है जो दुखी करने वाला नहीं है. इसको दूसरे तरीक़े से भी देखा जाना चाहिए कि शायद उनकी उर्दू शायरी और इसके रूपकों में दिलचस्पी पैदा हो जाए. फ़ैज़ की ताक़त को कम मत समझिए."

सलीमा हाशमी ने कहा कि रचनात्मक लोग 'तानाशाहों के प्राकृतिक दुश्मन' होते हैं.

उन्होंने कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि इस नज़्म के ज़रिए उनके पिता क़ब्र के बाहर लोगों से बात कर रहे हैं.

सलीमा कहती हैं, "यह चौंकाने वाला नहीं है कि फ़ैज़ सीमा के इधर या उधर अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं. कुछ सालों पहले मुझे बताया गया था कि नेपाल में राजशाही के ख़िलाफ़ लोकतंत्र की लड़ाई के दौरान ये नज़्म गाई गई थी."

मुज़फ़्फ़रनगर जेल में 10 दिन से बंद अतीक़ अहमद (24), मोहम्मद ख़ालिद (53), शोएब ख़ान (26) और एक सरकारी दफ़्तर के क्लर्क को रिहा कर दिया गया है. नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शनों के आरोप में पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार किया था लेकिन पुलिस का कहना है कि उनके पास इनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं.

इंडियन एक्सप्रेस अख़बर में छपी ख़बर के अनुसार, एसपी सिटी सतपाल अंतिल ने कहा है कि चारों को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिहा किया जा रहा है क्योंकि पुलिस इनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं ढूंढ पाई.

उन्होंने कहा, "हम बहुत निष्पक्षता से जाँच कर रहे हैं और अगर हम पाते हैं कि कोई दंगे या पत्थरबाज़ी में शामिल नहीं था तो हम उसी हिसाब से कार्रवाई कर रहे हैं."

इन लोगों को हिरासत में लिए जाने का कारण पूछने पर एसपी अंतिल ने बताया कि क्लर्क की घर की छत पर से पत्थरबाज़ी हुई थी जबकि बाक़ी के लोग भीड़ में शामिल थे.

इन आत्महत्याओं को बेमौसम की बारिश से जोड़कर देखा जा रहा है. राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार अक्तूबर में बेमौसम की भारी बारिश के बाद आत्महत्या की घटनाओं में काफ़ी तेज़ी आई.

सबसे अधिक आत्महत्या के मामले सूखा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र में देखने को मिले. मराठवाड़ा में 120 किसानों ने आत्महत्या की जबकि विदर्भ में 112 ऐसे मामले देखे गए.

देश के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (सीडीएस) नियुक्त होने के बाद जनरल बिपिन रावत ने वायु रक्षा कमान के लिए एक प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार के अनुसार, उन्होंने एकीकृत रक्षा स्टाफ़ मुख्यालय के उच्च अधिकारियों को यह प्रस्ताव तैयार करने को कहा है. यह कमान सैन्य तालमेल बढ़ाने और सभी सशस्त्र बलों के संसाधनों को बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल करने में मदद करेगा.

रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया है कि इस प्रस्ताव को जमा करने के लिए जनरल रावत ने 30 जून की तारीख़ तय की है.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म 'हम देखेंग' हिंदू विरोधी है या नहीं यह जानने के लिए आईआईटी कानपुर द्वारा बनाए गए पैनल पर फ़ैज़ की बेटी ने कहा है कि इसे हिंदू विरोधी कहना मज़ाक़िया है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पेंटर एवं सामाजिक कार्यकर्ता सलीमा हाशमी ने कहा कि उनकी पिता वही लिखते थे जो लोग ख़ुद अभिव्यक्त करना चाहते थे.

उन्होंने कहा, "यह दुखी करने वाला नहीं बल्कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की 'हम देखेंगे' को हिंदू विरोधी कहना मज़ाक़िया है. एक समूह इस नज़्म के संदेश की जाँच कर रहा है जो दुखी करने वाला नहीं है. इसको दूसरे तरीक़े से भी देखा जाना चाहिए कि शायद उनकी उर्दू शायरी और इसके रूपकों में दिलचस्पी पैदा हो जाए. फ़ैज़ की ताक़त को कम मत समझिए."

सलीमा हाशमी ने कहा कि रचनात्मक लोग 'तानाशाहों के प्राकृतिक दुश्मन' होते हैं.

न्होंने कहा कि उन्हें ख़ुशी है कि इस नज़्म के ज़रिए उनके पिता क़ब्र के बाहर लोगों से बात कर रहे हैं.

सलीमा कहती हैं, "यह चौंकाने वाला नहीं है कि फ़ैज़ सीमा के इधर या उधर अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं. कुछ सालों पहले मुझे बताया गया था कि नेपाल में राजशाही के ख़िलाफ़ लोकतंत्र की लड़ाई के दौरान ये नज़्म गाई गई थी."

मुज़फ़्फ़रनगर जेल में 10 दिन से बंद अतीक़ अहमद (24), मोहम्मद ख़ालिद (53), शोएब ख़ान (26) और एक सरकारी दफ़्तर के क्लर्क को रिहा कर दिया गया है. नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शनों के आरोप में पुलिस ने इन्हें गिरफ़्तार किया था लेकिन पुलिस का कहना है कि उनके पास इनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं.

इंडियन एक्सप्रेस अख़बर में छपी ख़बर के अनुसार, एसपी सिटी सतपाल अंतिल ने कहा है कि चारों को सीआरपीसी की धारा 169 के तहत रिहा किया जा रहा है क्योंकि पुलिस इनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं ढूंढ पाई.

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