Monday, March 2, 2020

दिल्ली चुनाव नतीजे: केजरी'वॉल' ने कैसे दी 'शाह' को मात

आम आदमी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ हो गई है. बीजेपी को उन्हीं का 'करंट' ज़ोर से लगा है.

अब बीजेपी कह रही है, "विजय से हम अहंकारी नहीं होते और पराजय से हम निराश नहीं होते". हालांकि भाजपा का प्रदर्शन 2015 के मुक़ाबले बेहतर ज़रूर हुआ.

कांग्रेस को चुनाव पहले हथियार डालने का पूरा सिला मिला. आम आदमी पार्टी के 50 से ज्यादा रोड शो के मुकाबले में अमित शाह ने 40 से ज्यादा सभाएं की. वहीं राहुल और प्रियांका ने केवल चार रैलियां की.

क्या इन्हीं रोड शो में छिपा है आम आदमी पार्टी के प्रचंड जीत का राज़ या फिर पर्दे के पीछे की रणनीति ने भी किया है कमाल.

आम आदमी पार्टी की जीत का क्या है मंत्र?

दिल्ली चुनाव नतीजे पर जब भी चर्चा शुरू होती है, नागरिकता क़ानून के खिलाफ़ शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन का ज़िक्र ज़रूर आता है.

इसी कड़ी में जब एक निजी न्यूज़ चैनल में साक्षातकार के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से शाहीन बाग़ पर सवाल पूछा, तो उनके एक जवाब ने बीजेपी को बैठे बिठाए मुद्दा दे दिया.

मनीष से सवाल पूछा गया, "शाहीन बाग़ पर आम आदमी पार्टी किधर है? इसके जवाब में मनीष ने कहा, "मैं शाहीन बाग़ के लोगों के साथ हूं"

23 जनवरी को मनीष सिसोदिया के इस बयान के बाद भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में इसे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया. भाजपा को इसका कितना फायदा मिला इस पर भाजपा वाले ज़रूर विचार करेंगे. लेकिन इतना जरूर है कि आम आदमी पार्टी ने वक्त रहते इस बयान का डैमेज़ कंट्रोल कर लिया.

इस बयान के बाद मनीष ने कोई बड़ा इंटरव्यू नहीं दिया और अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार में जुट गए.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन केजरीवाल विरोध प्रदर्शन करने वालों से न तो मिलने गए और न ही प्रदर्शन वालों को हटाने की कोई कवायद छेड़ी. शाहीन बाग़ में फायरिंग के बाद दिल्ली की क़ानून व्यवस्था पर एक ट्वीट जरूर किया.

वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी की मानें तो आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव से बहुत सबक लिया है. दिल्ली में पिछली लोकसभा चुनाव में आप को लग रहा था कि वो दो तीन सीटें ले आएगी. तब उन्होंने बीजेपी के जाल में फंस कर विपक्ष को अटैक करने की कोशिश की थी. इसका उन्हें बहुत नुक़सान हुआ. इस बार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ये ग़लती नहीं की.

अपर्णा मानती हैं कि केजरीवाल ने पूरी कोशिश की ताकि मुसलमान वोट उनसे छिटके नहीं और हिंदू वोटर नाराज़ भी न हों. दोनों को एक साथ साधने की कोशिश में ही अरविंद केजरीवाल के टीवी चैनल पर हनुमान चालीसा भी पढ़ा और चुनाव बाद हनुमान मंदिर भी गए.

अगस्त, 2019 में दिल्ली सरकार ने बिजली की 200 यूनिट मुफ़्त देने की घोषणा की थी यानी 200 यूनिट तक ख़र्च करने पर बिजली का बिल ज़ीरो आएगा.

पानी की बात करें तो इस समय दिल्ली सरकार 20 हज़ार लीटर तक पानी मुफ़्त दे रही है. आख़िर के छह महीने में दिल्ली सरकार ने 400 से ज़्यादा मोहल्ला क्लिनिक खुलवाएं, स्कूलों में 20 हज़ार नए कमरे बनवाने का दावा भी किया.

आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पहले अपना रिपोर्ट कार्ड जारी करते हुए अपने काम गिनाए. इसी पर उन्होंने अपना नारा भी बुलंद किया, 'मेरा वोट काम को,सीधे केजरीवाल को'

दिल्ली की जनता को इन योजनाओं का पूरा लाभ मिला. चुनाव के नतीजे इस बात को साबित भी करते हैं.

पिछले दिनों जितने भी टीवी चैनल पर अरविंद केजरीवाल ने इंटरव्यू दिए, उन्होंने शुरूआत इसी बात से की - दिल्ली में आम आदमी पार्टी को काम पर वोट करो, अगर हमने काम नहीं किया तो वोट मत करो.

इसका नतीजा ये है कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 300 यूनिट तक बिजली मुफ़्त देने का वादा किया और बीजेपी ने दो रुपए किलो आटा देने का वादा किया.

आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत इस बात की ओर इशारा भी करती है - मुफ़्त में बिजली-पानी का ये फ़ॉर्मूला अब दिल्ली के बाहर दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाएगा.

इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल से हो भी गई है. सोमवार को ही विधानसभा में बजट के दौरान तीन महीने में जिन घरों में बिजली की खपत 75 यूनिट बिजली की होगी, उन्हें पश्चिम बंगाल में मुफ्त बिजली मिलेगी.

भाजपा ने एक महीने के चुनाव प्रचार के दौरान आतंकवादी, बिरयानी, करंट और न जाने किन किन शब्दों का इस्तेमाल किया. नतीजों से साफ़ है उनके ये मुद्दे उन्हें बहुत ज्यादा सीटें दिलाने में कामयाब नहीं हो पाई.

अपर्णा कहती हैं, "फ्री में बिजली, पानी, बस यात्रा के बाद आगे उनपर दबाव होगा, मेट्रो की यात्रा फ्री करने का. ये आगे की बात है. लेकिन मुफ्त की चीज़ों ने उनके वोट बैंक को संगठित ज़रूर किया है. ख़ास तौर पर महिलाओं को."

इस विधानसभा चुनाव में वोट शेयर की बात करें तो कमोबेश आम आदमी पार्टी 50-55 फीसदी के आसपास ही रहा. इसके पीछे की एक बड़ी वजह अपर्णा बिजली-पानी के मुद्दे को ही मानती हैं.

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